आज है कूर्म जयंती जानें, भगवान विष्णु क्यों बने कछुआ
कूर्म जयंती भगवान विष्णु के कूर्म अवतार के रूप में मनाई जाती है। वैशाख मास की पूर्णिमा का शास्त्रों में अत्यधिक महत्व है।
वैशाख मास की पूर्णिमा को भगवान विष्णु समुद्र मंथन के समय कूर्म (कच्छप) अवतार लेकर मंदार पर्वत को अपनी पीठ पर संभाला था। कूर्म पुराण के अनुसार वैशाख मास की पूर्णिमा को भगवान विष्णु ने कूर्म (कछुए) का अवतार धारण किया था।
शास्त्रों में इस दिन को निर्माण कार्यों के लिए अत्यंत शुभ माना गया है। ऐसा माना जाता है कि यदि कोई मनुष्य घर की चाहत रखता है तो उसे भगवान विष्णु के कूर्म स्वरूप की पूजा करनी चाहिए।
शास्त्रानुसार असुरों के राजा दैत्यराज बलि के काल में असुर, दैत्य और दानव बहुत शक्तिशाली हो गए थे क्योंकि उन्हें दैत्य गुरु शुक्राचार्य की भी महाशक्ति प्राप्त थी। देवता लोग दैत्यों की बढ़ रही शक्ति से बहुत परेशान थे। देवताओं के राजा देवराज इन्द्र भी दैत्यों का कुछ नहीं बिगाड़ सकते थे क्योंकि एक बार महर्षि दुर्वासा ने देवराज इन्द्र को घमण्ड में चूर देखकर उन्हें शक्तिहीन होने का श्राप दे दिया था तथा इन्द्र के शक्तिहीन होने का लाभ उठाते हुए दैत्यराज बलि ने इन्द्र लोक पर भी अपना राज्य स्थापित कर लिया। जिस कारण इन्द्रदेव और सभी देवता इधर-उधर कन्दराओं में छिप कर अपना समय बिताने लगे।
परेशान इन्द्रदेव किसी प्रकार भगवान विष्णु जी के पास गए तथा उन्हें दैत्यराज बलि के अत्याचारों के बारे में बताया। तब भगवान विष्णु ने देवताओं के दुखों को दूर करने के लिए सागर में पड़े अमृत के घड़े को बाहर निकाल कर पीने की सलाह दी ताकि सभी देवता अमर हो सकें। इसके लिए सागर मंथन किया जाना था, जिसके लिए दैत्यों का सहयोग भी जरुरी था। देवताओं को निर्भय बनाने के लिए देवर्षि नारद ने भी अहम भूमिका निभाई और दैत्यराज बलि को चालाकी से अमृत पीने का लालच देकर सागर मंथन के लिए तैयार कर लिया। देवता तो पहले ही अमृत पीने के लिए सागर मंथन करना चाहते थे। दैत्यों ने अपना हित्त देखकर देवताओं के साथ वैर विरोध मिटाते हुए सागर मंथन करने के लिए मंदराचल पर्वत को मधानी बनाने के लिए उखाड़ा और वह उसे समुद्र के निकट ले आए।
नागराज वासुकी को रस्सी (नेती) बनाया गया और उसे मंदराचल पर्वत के गिर्द लपेटा गया परंतु जैसे ही सागर मंथन शुरु किया तो पर्वत पानी में कोई ठोस आधार न होने के कारण डूबने लगा। ऐसे में भगवान विष्णु जी ने कच्छप अवतार लेकर मंदराचल पर्वत को सहारा दिया तथा देवताओं और दैत्यों ने सागर मंथन किया गया। भगवान विष्णु जी ने देवताओं के दुखों को दूर करने के लिए कछुए के रुप में अवतार लिया और उनके मनोरथ को सफल बनाया।
कूर्म जयंती महत्व | Significance of Kurma Jayanti
जिस दिन भगवान विष्णु जी ने कूर्म का रूप धारण किया था उसी तिथि को कूर्म जयंती के रूप में मनाया जाता है. शास्त्रों नें इस दिन की बहुत महत्ता मानी गई है. इस दिन से निर्माण संबंधी कार्य शुरू किया जाना बेहद शुभ माना जाता है, क्योंकि योगमाया स्तम्भित शक्ति के साथ कूर्म में निवास करती है. कूर्म जयंती के अवसर पर वास्तु दोष दूर किए ज सकते हैं, नया घर भूमि आदि के पूजन के लिए यह सबसे उत्तम समय होता है तथा बुरे वास्तु को शुभ में बदला जा सकता है.
कूर्म मंत्र । Kurma Mantra
ॐ कूर्माय नम:
ॐ हां ग्रीं कूर्मासने बाधाम नाशय नाशय
ॐ आं ह्रीं क्रों कूर्मासनाय नम:
ॐ ह्रीं कूर्माय वास्तु पुरुषाय स्वाहा
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