इंदिरा एकादशी पर करें व्रत, पितरों को मिलेगा स्वर्ग
हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार, आश्विन माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी को इंदिरा एकादशी कहते हैं। इस दिन भगवान शालिग्राम की पूजा की जाती है व उनके निमित्त व्रत किया जाता है। इस व्रत को करने से मनुष्य सब पापों से छूट जाता है और वैकुंठ को प्राप्त होता है व उसके पितरों को भी स्वर्ग में स्थान मिलता है।
इंदिरा एकादशी व्रत की विधि इस प्रकार है-
व्रत विधि
एकादशी तिथि से एक दिन पहले यानी दशमी तिथि को सुबह स्नान आदि करने के बाद दोपहर के समय दोबारा किसी नदी या तालाब में जाकर स्नान करें। फिर श्रद्धापूर्वक पितरों का श्राद्ध करें और एक बार भोजन करें। एकादशी तिथि के दिन सुबह दातून आदि करके स्नान करें। इसके बाद संकल्प करें कि- मैं आज संपूर्ण भोगों को त्याग कर निराहार (बिना कुछ खाए-पिए) एकादशी का व्रत करूंगा या करूंगी। मैं आपकी शरण में हूं, आप मेरी रक्षा कीजिए।
इस प्रकार संकल्प लेने के बाद भगवान शालिग्राम की मूर्ति के आगे विधिपूर्वक श्राद्ध करके योग्य ब्राह्मणों को फलाहार कराएं और दक्षिणा दें। पितरों के श्राद्ध से जो बच जाए, उसे गाय को दें तथा ध़ूप, दीप, गंध, पुष्प, नैवेद्य आदि सब सामग्री से ऋषिकेश भगवान का पूजन करें। रात में भगवान की प्रतिमा के निकट जागरण करें। इसके बाद द्वादशी तिथि को सुबह होने पर भगवान का पूजन करके ब्राह्मणों को भोजन कराएं। भाई-बंधुओं, स्त्री और पुत्र सहित मौन होकर भोजन करें। इस प्रकार व्रत करने से पितरों को स्वर्ग में स्थान मिलता है।
पूरे साल में कुल 24 एकादशी आती है इनमें एक एकादशी ऐसी है जो हर साल पितृपक्ष में आती है इस एकादशी का नाम है इंदिरा एकादशी। पितृपक्ष की एकादशी होने के कारण यह एकादशी पितरों की मुक्ति के लिए उत्तम मानी गई। इस एकादशी की महिमा का उल्लेख ब्रह्मवैवर्त पुराण में मिलता है।
इस पुराण में भगवान श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा है कि आश्विन मास की कृष्णपक्ष की एकादशी का नाम इंदिरा एकादशी है। जो व्यक्ति इस एकादशी का व्रत रखकर भगवान हृषिकेश की पूजा करता है वह मृत्यु के बाद यमलोक जाने से बच जाता है।
इतना ही नहीं जिनके पूर्वज यानी पितर किसी पाप के कारण यमलोक में जाकर यम की यातना सह रहे हैं उन्हें भी यम के कोप से मुक्ति मिल जाती है और स्वर्ग जाने का अधिकारी बन जाते है। पितृपक्ष में इस एकादशी के आने का उद्देश्य भी यही है कि जिनके पितर यम की यातना सह रहे हैं उन्हें मुक्ति मिल जाए।
धर्म ग्रंथों के अनुसार यह व्रत करने से मनुष्य सब पापों से छूट जाता है और वैकुंठ को प्राप्त होता है व उसके पितरों को भी स्वर्ग में स्थान मिलता है।
इस व्रत की कथा इस प्रकार है-
सतयुग के समय महिष्मति नाम की नगरी में इंद्रसेन नाम का एक प्रतापी राजा धर्मपूर्वक अपनी प्रजा का पालन करते हुए रहता था। वह राजा पुत्र, पौत्र और धन आदि से संपन्न और भगवान विष्णु का परम भक्त था। एक दिन जब राजा सुखपूर्वक अपनी सभा में बैठा था तो आकाश मार्ग से महर्षि नारद उतरकर उसकी सभा में आए। राजा उन्हें देखते ही हाथ जोड़कर खड़ा हो गया और उनका पूजन किया।
उन्होंने देवर्षि नारद से उनके आने का कारण पूछा। तब नारद मुनि ने कहा कि- हे राजन! आप आश्चर्य देने वाले मेरे वचनों को सुनो। मैं एक समय ब्रह्मलोक से यमलोक को गया, वहां श्रद्धापूर्वक यमराज से पूजित होकर मैंने धर्मशील और सत्यवान धर्मराज की प्रशंसा की। उसी यमराज की सभा में महान ज्ञानी और धर्मात्मा तुम्हारे पिता को एकादशी का व्रत भंग होने के कारण देखा। उन्होंने संदेशा दिया वह मैं तुम्हें कहता हूँ। उन्होंने कहा कि पूर्व जन्म में कोई विघ्न हो जाने के कारण मैं यमराज के निकट रह रहा हूं।
इसलिए हे पुत्र यदि तुम आश्विन कृष्ण इंदिरा एकादशी का व्रत मेरे निमित्त करो तो मुझे स्वर्ग की प्राप्ति हो सकती है। नारदजी की बात सुनकर राजा ने अपने बांधवों तथा दासों सहित व्रत किया, जिसके पुण्य प्रभाव से राजा के पिता गरुड़ पर चढ़कर विष्णुलोक को गए। राजा इंद्रसेन भी एकादशी के व्रत के प्रभाव से निष्कंटक राज्य करके अंत में अपने पुत्र को सिंहासन पर बैठाकर स्वर्गलोक को गए।
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