किस तिथि व नक्षत्र में श्राद्ध करने से क्या फल मिलता है, जानिए
भाद्रपद मास की पूर्णिमा से लेकर आश्विन मास की अमावस्या तक का समय पितरों के तर्पण, श्राद्ध व पिंडदान के लिए उत्तम माना गया है। इन 16 दिनों को ही श्राद्ध पक्ष कहते हैं। धर्म ग्रंथों के अनुसार, जिस तिथि को सगे-संबंधी की मृत्यु हुई हो, उसी दिन उनके निमित्त श्राद्ध करना चाहिए। यही श्राद्ध का नियम है। महाभारत के अनुशासन पर्व में भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को श्राद्ध के संबंध में विस्तार से बताया है। भीष्म ने युधिष्ठिर को ये भी बताया है कि किस तिथि व नक्षत्र में श्राद्ध करने से उसका क्या फल मिलता है। आप भी जानिए-
महाभारत के अनुसार प्रतिपदा तिथि पर पितरों की पूजा करने पर बहुत ही सुंदर और सुयोग्य संतानों को जन्म देने वाली रूपवती पत्नी प्राप्त होती है। द्वितीया तिथि पर श्राद्ध करने से घर में कन्याएं पैदा होती हैं।
तृतीया तिथि पर श्राद्ध करने से घोड़े मिलते हैं। चतुर्थी को श्राद्ध करने से बहुत से छोटे-छोटे पशुओं की प्राप्ति होती है। पंचमी को श्राद्ध करने से बहुत से पुत्र उत्पन्न होते हैं।
षष्ठी तिथि को श्राद्ध करने से सौंदर्य में वृद्धि होती है। सप्तमी को श्राद्ध करने से खेती में लाभ होता है। अष्टमी को श्राद्ध करने से व्यापार में लाभ होता है।
नवमी तिथि पर श्राद्ध करने से खुरवाले पशु (घोड़े-खच्चर आदि) की वृद्धि होती है। दशमी को श्राद्ध करने से गौ धन में वृद्धि होती है।
एकादशी तिथि पर श्राद्ध करने से बर्तन और कपड़े प्राप्त होते हैं तथा घर में ब्रह्मतेज से संपन्न पुत्रों का जन्म होता है। द्वादशी को श्राद्ध करने वाले मनुष्य के यहां सदा सोने-चांदी और अधिक धन की वृद्धि होती है।
त्रयोदशी को श्राद्ध करने वाला पुरुष अपने जाति बंधुओं से सम्मानित होता है किंतु जो चतुर्दशी को श्राद्ध करता है, उसके घर वाले जवानी में ही मर जाते हैं और श्राद्धकर्ता को भी शीघ्र ही लड़ाई में जाना पड़ता है।
अमावस्या को श्राद्ध करने से मनुष्य की सारी कामनाएं पूर्ण होती हैं। चतुर्दशी के सिवा दशमी से लेकर अमावस्या तक की तिथियां श्राद्ध के लिए उत्तम मानी गई है अन्य तिथियां इनके समान नहीं हैं।
1. जो मनुष्य कृत्तिका नक्षत्र में श्राद्ध करता है, उसे पुत्र की प्राप्ति होती है और उसके शोक-संताप दूर हो जाते हैं।
2. पुत्र की कामना वाले मनुष्य को रोहिणी नक्षत्र में और तेज की इच्छा रखने वाले को मृगशिरा नक्षत्र में श्राद्ध करना चाहिए।
3. आद्रा नक्षत्र में श्राद्ध करने वाले मनुष्य की क्रूर कर्म में प्रवृत्ति होती है। पुर्नवसु नक्षत्र में श्राद्ध करने से धन की इच्छा बढ़ती है। जो अपने शरीर की पुष्टि चाहता है उसे पुष्य नक्षत्र में श्राद्ध करना चाहिए।
4. आश्लेषा नक्षत्र में श्राद्ध करने वालों को भाई-बंधुओं से सम्मान प्राप्त होता है। पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र में श्राद्ध का दान करने से सौभाग्य की वृद्धि और उत्तराफाल्गुनी में करने से संतान की वृद्धि होती है।
5. चित्रा नक्षत्र में श्राद्ध करने वाले को रूपवान पुत्रों की प्राप्ति होती है। स्वाती नक्षत्र में पितरों की पूजा करने से व्यापार में उन्नति होती है। विशाखा नक्षत्र में श्राद्ध करने से अनेक पुत्र प्राप्त होते हैं।
6. अनुराधा नक्षत्र में श्राद्ध करने वाला पुरूष राजाओं पर शासन करता है। यदि कोई ज्येष्ठा में श्राद्ध करता है तो उसे ऐश्वर्य प्राप्त होता है। मूल में श्राद्ध करने से आरोग्य और पूर्वाषाढ़ा में यश मिलता है। उत्तराषाढ़ा में श्राद्ध करने से मनुष्य को किसी प्रकार का शोक नहीं होता।
7. अभिजीत नक्षत्र में श्राद्ध करने वाला वैद्य वैद्यकशास्त्र में सफलता प्राप्त करता है। श्रवण में श्राद्ध करने से सद्गति मिलती है। धनिष्ठा में श्राद्ध करने वाला राज्य का भागी होता है। यदि वैद्य शतभिषा में श्राद्ध करे तो उसे कार्य में सफलता मिलती है।
8. पूर्वाभाद्रपदा नक्षत्र में श्राद्ध करने वाले को बहुत से बकरे और भेड़े मिलते हैं। उत्तराभाद्रपदा में श्राद्ध करने से गाएं प्राप्त होती हैं। रेवती में श्राद्ध करने वाले को अनेक प्रकार की धातुओं का लाभ होता है।
9. अश्विनी नक्षत्र में श्राद्ध करने से घोड़े मिलते हैं और भरणी में श्राद्ध करने से उत्तम आयु प्राप्त होती है। जो हस्त नक्षत्र में श्राद्ध करता है वह अभीष्ट फल का भागी होता है।
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