शत्रु नहीं मित्र भी हैं शनिदेव
सूर्यदेव की तीन संतान हैं, यम, यमुना और शनि। अपने प्रभावों के कारण शनिदेव सर्वाधिक ध्यानाकर्षित करने वाले देव रहे हैं। वे मित्र भी हैं और शत्रु भी। उन्हें मारक, अशुभ और दु:खकारक माना जाता है तो वे मोक्ष प्रदाता भी हैं। वे न्याय के देवता हैं। जो लोग अनुचित व्यवहार करते हैं वे उन्हें दंड देते हैं और जो परहित के कार्यों में संलग्न रहते हैं उन्हें समृद्धि का वर।
इस तरह वे प्रकृति में संतुलन पैदा करने वाले देव के रूप में भी प्रतिष्ठित हैं। शनि का न्याय पूरे संसार में प्रसिद्ध है। कहा जाता है राजा हरिश्चंद्र को अगर शनि का दंड भुगतना पड़ा तो उसके पीछे कारण हरिश्चंद्र का दान देने का गर्व था। उन्हें सपत्नीक बाजार में बिकना पड़ा और श्मशान में चौकीदार तक बनना पड़ा। राजा नल और दमयन्ती को भी शनि के प्रभाव के कारण ही अपने पापों के दंड स्वरूप जगह-जगह भटकना पड़ा।
धर्मग्रंथों के अनुसार सूर्य की पत्नी छाया के गर्भ से शनिदेव का जन्म हुआ। मां के प्रभाव से ही शनि श्याम वर्णी हैं। वे शिव के अनन्य भक्त थे और शिव ने ही उन्हें वरदान दिया कि नवग्रहों में तुम्हारा सर्वश्रेष्ठ स्थान होगा। मानव क्या देवता भी तुम्हारे नाम से भयभीत रहेंगे।
ज्योतिष में शनि
फलित ज्योतिष शास्त्र में शनि को मंदगामी, सूर्यपुत्र और शनिश्वर जैसे अनेक नामों से पुकारा गया है। शनि एक राशि में ढाई वर्ष तक रहता है। कोई भी दूसरा ग्रह राशि इतने लंबे समय तक नहीं रहता है। सूर्य, चन्द्र, मंगल शनि के शत्रुग्रह माने जाते हैं जबकि बुध और शुक्र मित्र ग्रह। गुरु सम ग्रह है।
लग्न में बैठा शनि ठीक नहीं होता है और जातक को कष्ट देता है। अगर अंक शास्त्र की बात की जाए तो 8 का अंक शनि का माना जाता है। अगर किसी भी व्यक्ति की जन्म तारीख के अंकों का योग 8 है तो उसके अंकाधिपति शनिदेव होंगे। अगर जातक का जन्म 8, 17, 26 तारीख को हुआ है तो अंकाधिपति शनिदेव हैं। ऐसे में उन्हें प्रसन्ना करके उनकी कृपा प्राप्त करना जातक के लिए महत्वपूर्ण हो जाता है।
शनि की साढ़े साती
ज्योतिष विद्या में शनि की साढ़ेसाती तीन तरह से देखी जाती है। पहली लग्न से, दूसरी चन्द्र लग्न या राशि से और तीसरी सूर्य लग्न से। अधिकतर विद्वान चन्द्र लग्न से शनि की साढ़ेसाती की गणना करते हैं। इसके अनुसार जब शनिदेव चन्द्र राशि पर गोचर से भ्रमण करते हैं तो साढ़ेसाती मानी जाती है। इसका प्रभाव शनि के राशि में आने के ढाई बरस पहले से और ढाई बरस बाद तक रहता है।
जैसे अगर आपकी राशि मेष है तो जब शनि मीन राशि में होंगे तबसे लेकर जब वे वृषभ राशि में जाएंगे तब तक आप पर प्रभाव बना रहेगा। लेकिन शनि की साढ़ेसाती कष्टकारक ही नहीं बल्कि समृद्धिदायक भी होती है। यह आपके पूर्व कर्मों पर तय करता है। अगर आपने अच्छे कर्म किए हैं तो साढ़ेसाती आपको निहाल कर सकती है।
हर मनुष्य की राशि में 30 वर्षों में एक बार साढ़ेसाती आती है। जीवन में 3 बार ही साढ़ेसाती का सामना करना पड़ता है। किसी भी जातक की जन्म कुंडली में शनि की महादशा 19 वर्ष की होती है। यदि साढ़ेसाती चौथे, छठे, आठवें और बारहवें भाव में होगी तो जातक को अवश्य दुखी करेगी लेकिन अगर यह धनु, मीन, मकर और कुंभ राशि में होती है तो कम पीड़ाजनक होती है।
जब आप शनि की साढ़ेसाती से गुजर रहे हों तो ज्योतिष की सलाह पर ही कोई नया उद्यम शुरू करना या वाहन खरीदी की जाना चाहिए। संभव हो तो इन्हें टाला जाना चाहिए। अगर आपका शनि नीच है तो इनसे बचना चाहिए। शनि की साढ़ेसाती से भयभीत होने की जरूरत नहीं है। इस दौरान हनुमान चालीसा का पाठ किया जाए तो शनि की तिरछी दृष्टि का प्रभाव कम होता है। शनि और हनुमान मंदिर में दीप जलाना भी श्रेष्ठ है। शनिवार व्रत करने से भी शनिदेव का आशीर्वाद पाया जा सकता है।
कैसे करें शनिदेव को प्रसन्न
शनिदेव की कुपित दृष्टि से बचने के लिए काले कपड़े, जामुन फल, उड़द दाल, काले जूते और काली वस्तुओं का दान करना चाहिए। प्रत्येक शनिवार को शनि दर्शन का भी महत्व है। दान देने से शनिदेव प्रसन्ना होते हैं और कृपा करते हैं। हनुमानजी की पूजा अर्चना से भी शनिदेव की कृपा प्राप्त की जा सकती है। दान करने से पहले भी ज्योतिर्विदों की सलाह लेना अधिक फलदायक हो सकता है और कष्टों से मुक्ति दिलाता है।
शनि चालीसा और शनिवार व्रत कथा हिंदी में जानने के लिए क्लिक करे।
भारत में चमत्कारिक शनि सिद्ध पीठ
पूरे देश में शनिदेव के तीन सिद्ध पीठ माने जाते हैं। इनमें महाराष्ट्र के शिंगणापुर गांव का सिद्ध पीठ प्रमुख है। इस गांव में शनिदेव की मान्यता इतनी है कि कोई भी अपने घर में ताला नहीं लगाता है तो भी यहां कोई चोरी करने का प्रयास भी नहीं करता है। माना जाता है इस गांव के अधिपति शनिदेव हैं।
दूसरा है मध्यप्रदेश के ग्वालियर के पास शनिश्वरा मंदिर। यहां शनिश्चरी अमावस्या को मेला लगता है जातक शनिदेव पर तेल चढ़ाते हैं और उन्हें नमन करते हैं। वे पहनकर आए कपड़े और जूते आदि इसी जगह छोड़ जाते हैं और आस्था है कि इस तरह वे समस्त दरिद्रता और क्लेशों से मुक्त होते हैं।यह पीठ त्वरित फलदायी है।
तीसरी प्रसिद्ध जगह है उत्तरप्रदेश के कोशी के पास कोकिला वन में सिद्ध शनिदेव मंदिर। किवदंती है कि इन वन में द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने शनिदेव को दर्शन और वर दिया था कि जो इस वन की परिक्रमा करेगा और शनिदेव की पूजा करेगा उसे मेरे सदृश ही शनिदेव की कृपा प्राप्त होगी।
Leave a Reply