श्री राम नवमी पूजा विधि Vidhi Method of Performing Puja on Ram Navami

2014 - 1

नारद पुराण के अनुसार राम नवमी के दिन भक्तों को उपवास करना चाहिए। श्री राम जी की पूजा-अर्चना करने के बाद ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए और गौ, भूमि, वस्त्र आदि का दान देना चाहिए। इसके बाद भगवान श्रीराम की पूजा संपन्न करनी चाहिए।

नवमी के दिन प्रात:काल स्नानकर शुद्ध हो पूजा गृह में सभी पूजन सामग्री के साथ बैठ जायें। चौकी अथवा लकड़ी के पटरे पर लाल वस्त्र बिछाकर, उस पर श्रीरामचंद्रजी की दो भुजाओं वाली की मूर्ति स्थापित करें। उसके बाद विधिपूर्वक पूजा करें। श्रीराम की कथा सुने। पूरे दिन उपवास रखें। रात्रि जागरण करें। दूसरे दिन प्रात:काल उठकर और स्नानादि से शुद्ध होकर प्रतिमा की पुन: पूजा करें। घी तथा खीर से 108 आहुतियों से हवन करें।
हवन के बाद मूर्ति को ब्राह्मण को दान में दे एवं सामर्थ्यानुसार दक्षिणा भी दें। उसके बाद स्वयं भोजन करें।

रामनवमी पूजन सामग्री:-

 श्री रामजी की प्रतिमा
चौकी/ लकड़ी का पटरा
वस्त्र( दो लाल , एक पीला) – 3
यज्ञोपवीत
धूप
दीप
घी
नैवेद्य
ऋतुफल
कपूर
अक्षत
ताम्बूल
दूध
दही
घी
शहद
शर्करा
पान का पत्ता
सुपारी
गुड़
कपूर
पुष्प
दीप
तुलसी दल
फल
नारियल
कलश(मिट्टी का)
गंगाजल
शुद्ध जल
आसन

श्री राम कथा:-

सुर्यवंश में दशरथ नाम के एक राजा थे। उनकी तीन रानियाँ थी- कौशल्या,कैकयी तथा सुमित्रा। लेकिन राजा दशरथ के कोई संतान न था। गुरु वशिष्ठ की आज्ञा से राजा दशरथ ने पुत्रेष्टि यज्ञ किया जिसके प्रभाव से तीनों रानियाँ गर्भवती हुई और समय आने पर कौशल्या से राम, कैकयी से भरत तथा सुमित्रा से शत्रुघ्न एवं लक्ष्मण का जन्म हुआ।चारों ओर प्रसन्नता छा गई।चारों रजकुमार का लालन पालन होने लगा। उन दिनों राक्षसों का बहुत प्रकोप था। एक दिन गुरु विश्वामित्र अयोध्या नगरी पधारे। उन्होंने राजा दशरथ से श्रीराम और लक्ष्मण को माँगा जिससे वे अपना यज्ञ निर्विघ्न रूप से सम्पन्न कर सके। श्रीरामचंद्र और लक्ष्मण जी मुनि विश्वामित्र के साथ उनके आश्रम में चले गये। यज्ञ की रक्षा करते हुये श्रीरामचंद्र जी ने ताड़का नामक राक्षस का वध किया।उसी दौरान उन्होंने खर-दूषण का भी वध किया। मुनि विश्वामित्र का यज्ञ निर्विघ्न पूर्ण हुआ।

उसके बाद मुनि विश्वामित्र दोनों राजकुमार को लेकर मिथिला नगरी की ओर चल पड़े, जहाँ राजा जनक ने अपनी पुत्री का स्वयम्वर आयोजित किया था। रास्ते में श्रीरामचंद्र जी ने पत्थर की बनी हुई अहिल्या को शाप मुक्त करवाया। कुछ दिनों बाद दोनों राजकुमार ,मुनि विश्वामित्र के साथ मिथिला नगरी पहुँचे।राजा जनक ने अपनी पुत्री सीता के विवाह के लिये यह शर्त रखी थी कि जो भी राजकुमार या राजा शिवजी के धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ायेगा,उसी के साथ वे अपनी पुत्री सीता का विवाह करेंगे।

दोनों राजकुमार, विश्वामित्र के साथ जनक के राज्यसभा में सीता के स्वयम्वर को देखने गये। प्रतिज्ञा के अनुसार सभी आमंत्रित राजाओं ने शिवजी के धनुष को उठाने की कोशिश की लेकिन सफल ना हो सके। यहदेखकर राजा जनक को बहुत निराशा हुई, तब मुनि विश्वामित्र ने श्रीरामजी को आज्ञा दी कि वे धनुष को उठाकर प्रत्यंचा कहडः-आये जिससे राजा जनक की प्रतिज्ञा पूरी हो।गुरु की आज्ञा पाकर श्रीरामचंद्र जी ने शिवजी के धनुष को उठायाऔर प्रत्यंचा चढ़ाने के समय वह धनुष टूट गया।

रामचंद्र जी का विवाह सीता जी के साथ हुआ। साथ ही लक्ष्मण का उर्मिला से, माण्डवी का भरत से और श्रुतिकिर्ती का शत्रुघ्न से विवाह सम्पन्न हुआ।

विवाह के कुछ दिनों के पश्चात राजा दशरथ ने श्रीरामचंद्र जी के राज्याभिषेक करने के लिये मुनि सए शुभ मुहुर्त निकलवाया। पूरे राज्य में राज्याभिषेक की तैयारी होने लगी। तभी मंथरा नामक दासी के कहने पर कैकयी ने राजा दशरथ को अपने कोप भवन में बुलाया। जब राजा दशरथ , कैकयी के पास पहुँचे तब कैकयी ने महाराज दशरथ को उनके वचन की याद दिलाई, जो वचन राजा दशरथ ने कैकयी को युद्ध के समय अपनी सहायता करने के बाद दिया था।उस वचन को याद दिलाते हुये कैकयी ने कहा – राम के स्थान पर भरत का राज्याभिषेक और राम जी को चौदह वर्ष का वनवास ।

यह सुनकर राजा दशरथ मूर्छित हो गये। जब श्रीरामचंद्र जी को पता चला तो वे पिता के वचन को पूरा करने के लिये चौदह वर्ष के वनवास को जाने के लिये तैयार हो गये। सीता जी और लक्ष्मण जी भी , श्रीरामचंद्र के साथ वन को चले गये।

इधर पुत्र शोक में राजा दशरथ स्वर्ग की प्राप्ति हुई। भरत और शत्रुघ्न , उस समय ननिहाल में थे; जब वे लौट के आये तो अपनी माता कैकयी का मुँह देखना भी स्वीकार नहीं किया। भरत ने रामजी के पास वन में जाकर लौटने की विनती की , लेकिन पिता के वचन को पूरा करने का वास्ता देकर , रामचंद्र जी ने भरत को लौटने की आज्ञा दी। तब भरत ने श्रीराम जी का खड़ाऊँ माँगा, जिससे की उस खड़ाऊँ को राजगद्दी पर रखकर वे रामजी के सेवक के रूप में राज्य की देखभाल कर सकें।

  • On this day of Ram Navami devotees of Shri Ram observe a fast.
  • Idols of Shri Ram and Sita Mata are adorned with new clothes and jewellery and puja is performed.
  • Bhojan, clothes and dakshina are offered to the Brahmins.
  • Before 12 noon, the following couplet is recited which all the Gods had sung at the birth of Shri Ram.

 

“Jai jai surnaayak jan sukh daayak pranatpaal bhagwantaa
go dwij hitkaari jai asuraari sindhusuta priya kanta
paalan sur dharani adbhut karani maram na jaane koi
jo sahaj kripaala deendayaala karau anugrah soi”

राम नवमी स्पेशल Ram Navmi Special

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