अक्षय तृतीया का पौराणिक महत्व | Historical significance of Akshaya Tritya

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इस पर्व से अनेक पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं. इसके साथ महाभारत के दौरान पांडवों के भगवान श्रीकृष्ण से अक्षय पात्र लेने का उल्लेख आता है. इस दिन सुदामा और कुलेचा भगवान श्री कृष्ण के पास मुट्ठी – भर भुने चावल प्राप्त करते हैं. इस तिथि में भगवान के नर-नारायण, परशुराम, हयग्रीव रुप में अवतरित हुए थे. इसलिये इस दिन इन अवतारों की जयन्तियां मानकर इस दिन को उत्सव रुप में मनाया जाता है. एक पौराणिक मान्यता के अनुसार त्रेता युग की शुरुआत भी इसी दिन से हुई थी. इसी कारण से यह तिथि युग तिथि भी कहलाती है.

अक्षय तृतीया तिथि के दिन अगर दोपहर तक दूज रहे, तब भी अक्षय तृतीया इसी दिन मनाई जाती है. इस दिन सोमवार व रोहिणी नक्षत्र हो तो बहुत उत्तम है. जयन्तियों का उत्सव मनाना और पूजन इत्यादि कराना हों, तो विद्वान पंडित से कराएं. इसी दिन प्रसिद्ध तीर्थस्थल बद्रीनारायण के कपाट भी खुलते हैं.  वृन्दावन स्थित श्री बांके बिहारी जी के मन्दिर में केवल इसी दिन श्री विग्रह के चरण दर्शन होते हैं, अन्यथा वे पूरे वर्ष वस्त्रों से ढके रहते हैं.

 

 

अक्षय तृतीया महत्व

 

अक्षय तृतीया में दान पुण्य का महत्व | Significance of charity on Akshaya Tritya

 

अक्षय तृतीया का पौराणिक महत्व | Historical significance of Akshaya Tritya

 

अक्षय तृतीया | Akshaya Tritiya | Akha Teej | Vaishakh Teej


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