श्राद्ध में क्या करें, क्या न करें ?

Pitar paksh shardha

दूसरेकी भूमिपर श्राद्ध नहीं करना चाहिये। जंगल, पर्वत, पुण्यतीर्थ और देवमन्दिर – ये दूसरेकी भुमिमें नहीं आते; क्योंकि इनपर किसीका स्वामित्व नहीं होता । – कूर्मपुराण

श्राद्धमें पितरोंकी तृप्ति ब्राह्मणोंके द्वारा ही होती है। -स्कन्दपुराण

रात्रिमें श्राद्ध नहीं करना चाहिये, उसे राक्षसी कहा गया है। दोनों सन्ध्याओंमें तथा पूर्वाह्णकालमें भी श्राद्ध नहीं करना चाहिये । – मनुस्मृति ३।२८०

श्राद्धकालमें आये हुए अतिथिका अवश्य सत्कार करे। उस समय अतिथिका सत्कार न करनेसे वह श्राद्ध कर्मके सम्पूर्ण फलको नष्ट कर देता है। – वराहपुराण

श्राद्धमें पहले अग्निको ही भाग अर्पित किया जाता है। अग्निमें हवन करनेके बाद जो पितरोंके निमित्त पिण्डदान किया जाता है, उसे ब्रह्मराक्षस दूषित नहीं करते। – महाभारत, अनु. ९२।११-१२

जो अज्ञानी मनुष्य अपने घर श्राद्ध करके फिर दुसरे घर भोजन करता है, वह पाप का भागी होता है और उसे श्राद्धका फल नहीं मिलता। – स्कन्दपुराण

एक हाथसे लाया गया जो अन्न (अन्नपात्र) ब्राह्मणोंके आगे परोसा जाता है, उस अन्नको राक्षस छीन लेते हैं। – मनुस्मृति ३।२२५

वस्त्रके बिना कोई क्रिया, यज्ञ, वेदाध्ययन और तपस्या नहीं होती । अतः श्राद्धकालमें वस्त्रका दान विशेषरुपसे करना चाहिये। -ब्रह्मपुराण

श्राद्ध और हवनके समय तो एक हाथसे पिण्ड एवं आहुति दे, पर तर्पणमें दोनों हाथोंसे जल देना चाहिये। – पद्मपुराण,नारदपुराण,मत्स्यपुराण,ब्रह्मपुराण,लघुयमस्मृति

श्राद्धके पिण्डोंको गौ, ब्राह्मण या बकरीको खिला दे अथवा अग्नि या पानीमें छोड दे । – मनुस्मृति ३।२६०, महाभारत,अनु. १४५

जो सफेद तिलोंसे पितरोंका तर्पण करता है, उसका किया हुआ तर्पण व्यर्थ होता है । – पद्मपुराण

जहाँ रजस्वला स्त्री, चाण्डाल और सुअर श्राद्धके अन्नपर दृष्टि डाल देते हैं, वह अन्न प्रेत ही ग्रहण करते हैं। -स्कन्दपुराण

श्राद्धमें तीन वस्तुएँ अत्यन्त पवित्र हैं – दुहितापुत्र, कुतपकाल (जब सूर्यका ताप घटने लगता है, उस समय का नाम है ‘कुतप’) तथा तिल । – महाभारत, आदि. ९३,अनु. १४५, सकन्दपुराण, मनुस्मृति

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   One Comment


  1. kalpesh soni
      December 13, 2010

    jo manusaya apana jivan bhagvan shri krishna(sawliya seth) ko samarpet karta hai…apna maan punn taya seth ji me lagat hai uski raksha khud bhgavan shri krishna ji karte hai………..bhagav shri krishna ka naam kisi bhi samay kisi bhi jagah liya ja sakta hai……jis kagah bhagavan shri krishna ka naam liya jata hai vaha jagah pavitra ho jati hai

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