कभी कभी भगवान् को भी भक्तों से काम पड़े

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कभी कभी भगवान् को भी भक्तों से काम पड़े ।
जाना था गंगा पार प्रभु केवट की नाव चढ़े ॥

अवध छोड़ प्रभु वन को धाये,
सिया राम लखन गंगा तट आये ।
केवट मन ही मन हर्षाये,
घर बैठे प्रभु दर्शन पाए ।
हाथ जोड़ कर प्रभु के आगे केवट मगन खड़े ॥

प्रभु बोले तुम नाव चलाओ,
अरे पार हमे केवट पहुँचाओ ।
केवट बोला सुनो हमारी,
चरण धुल की माया भारी ।
मैं गरीब नैया मेरी नारी ना होए पड़े ॥

चली नाव गंगा की धारा,
सिया राम लखन को पार उतारा ।
प्रभु देने लगे नाव उतराई,
केवट कहे नहीं रागुराई ।
पार किया मैंने तुमको, अब तू मोहे पार करे ॥

केवट दोड़ के जल भर ले आया,
चरण धोये चरणामृत पाया ।
वेद ग्रन्थ जिन के गुण गाये,
केवट उनको नाव चढ़ाए ।
बरसे फूल गगन से ऐसे,
भक्त के भाग्य जगे ॥

तुझे सब मानते हैं, तेरा घर जानते हैं ।
चले आते हैं दौड़े, जो खुशकिस्मत हैं थोड़े ।
यह हर राही की मंजिल, यह हर कश्ती का साहिल ।
जिसे सब ने निकाला, उसे तुने संभाला ।
तू बिछड़ो को मिलाये, बुझे दीपक जलाए ।
यह गम की राते, राते यह काली, इनको बनादे बाबा ईद और दीवाली ॥


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