आज है उत्पन्ना एकादशी जानिए महत्व एवं व्रत कथा Utpanna Ekadashi Vrat Katha

उत्पन्ना एकादशी कार्तिक पूर्णिमा के ठीक बाद की एकादशी होती है। उत्पन्न एकादशी मार्गशीर्ष के शुक्ल पक्ष की एकादशी को होती है। शास्त्रों के अनुसार इस एकादशी को ही एकादशी व्रत की शुरुआत हुई थी। उत्पन्ना एकादशी के दिन विष्णु भगवान् ने राक्षस मुरसुरा को मारा था, जिसके बाद से उनकी जीत की ख़ुशी में इस एकादशी को मनाया जाता है।

मान्यता के अनुसार सतयुग में इसी एकादशी के दिन ही विष्णु से शरीर से एक देवी के उत्पत्ति हुई थी। इसलिए इस एकादशी को उत्पन्ना एकादशी कहा जाता है। इस एकादशी के दिन ही भगवान विष्णु के शरीर से उत्पन्न हुई देवी ने इनकी जान बचाई थी।जिससे प्रसन्न होकर विष्णु ने इस देवी का नाम एकादशी रखा था।  इस एकादशी का व्रत जो भी करता है उसे सभी पापों से मुक्ति मिलती है।

इस साल उत्पन्ना एकादशी 14 नवंबर (मंगलवार) को है।

उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा Utpanna Ekadashi Vrat Katha

उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा Utpanna Ekadashi Vrat Katha

उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा Utpanna Ekadashi Vrat Katha

सतयुग के समय एक महा बल शाली राक्षस था, जिसका नाम मुर था। उसने अपनी शक्ति से स्वर्ग लोक को जीत लिया था। उसके पराक्रम के आगे इंद्र देव, वायु देव, अग्नि देव कोई भी नहीं टिक पाये थे, जिस कारण उन सभी को जीवन व्यापन के लिये मृत्युलोक जाना पड़ा। हताश होकर इंद्र देव कैलाश गये और भोलेनाथ के सामने अपने दुःख और तकलीफ का वर्णन किया। उसने प्रार्थना की कि वे उन्हें इस परेशानी से बाहर निकाले। भगवान शिव ने उन्हें विष्णु जी के पास जाने की सलाह दी। उनकी सलाह पर सभी देवता क्षीरसागर पहुंचे, जहाँ विष्णु जी निंद्रा में थे। सभी ने इंतजार किया। कुछ समय बाद विष्णु जी के नेत्र खुले तब सभी देवताओं ने उनकी स्तुति की।
विष्णु जी ने उनसे क्षीरसागर आने का कारण पूछा। तब इंद्र देव ने उन्हें विस्तार से बताया कि किस तरह मुर नामक राक्षस ने सभी देवताओं को मृत्यु लोक में जाने के लिये विवश कर दिया। सारा वृतांत सुन विष्णु जी ने कहा ऐसा कौन बलशाली हैं जिसके सामने देवता नही टिक पाये। तब इंद्र ने राक्षस के बारे में विस्तार से बताया कि इस राक्षस का नाम मुर हैं उसके पिता का नाम नाड़ी जंग हैं यह ब्रह्मवंशज हैं। उसकी नगरी का नाम चन्द्रावती हैं उसने अपने बल से सभी देवताओं को हरा दिया और उनका कार्य स्वयं करने लगा हैं वही सूर्य है वही मेघ और वही हवा और वर्षा का जल हैं। उसे हरा कर हमारी रक्षा करे नारायण।

पूरा वर्णन सुनने के बाद विष्णु जी ने इंद्रा को आश्वासन दिया कि वो उन्हें इस विप्पति के निकालेंगे। इस प्रकार विष्णु जी मुर दैत्य से युद्ध करने उसकी नगरी चन्द्रावती जाते हैं। मुर और विष्णु जी के मध्य युद्ध प्रारंभ होता हैं। कई वर्षो तक युद्ध चलता हैं। कई प्रचंड अश्त्र शस्त्र का उपयोग किया जाता हैं पर दोनों का बल एक समान सा एक दुसरे से टकरा रहा था। कई दिनों बाद दोनों में मल युद्ध शुरू हो गया और दोनों लड़ते ही रहे कई वर्ष बीत गये। बीच युद्ध में भगवान विष्णु का निंद्रा आने लगी और वे बदरिकाश्रम चले गये। शयन करने के लिये भगवान हेमवती नमक एक गुफा में चले गये। मुर भी उनके पीछे घुसा और शयन करते भगवान को देख मारने को हुआ जैसे ही उसने शस्त्र उठाया भगवान के अंदर से एक सुंदर कन्या निकली और उसने मुर से युद्ध किया। दोनों के मध्य घमासान युद्ध हुआ जिसमे मुर मूर्छित हो गया बाद में उसका मस्तक धड़ से अलग कर दिया गया। उसके मरते ही दानव भाग गये और देवता इन्द्रलोक चले गये।
जब विष्णु जी की नींद टूटी तो उन्हें अचम्भा सा लगा कि यह सब कैसे हुआ तब कन्या ने उन्हें पूरा युद्ध विस्तार से बताया जिसे जानकर विष्णु जी प्रसन्न हुये और उन्होंने कन्या को वरदान मांगने कहा। तब कन्या ने भगवान से कहा मुझे ऐसा वर दे कि अगर कोई मनुष्य मेरा उपवास करे तो उसके सारे पापो का नाश हो और उसे विष्णुलोक मिले। तब भगवान विष्णु ने उस कन्या को एकादशी नाम दिया और कहा इस व्रत के पालन से मनुष्य जाति के लोगो के पापो का नाश होगा और उन्हें विष्णुलोक मिलेगा। उन्होंने यह भी कहा इस दिन तेरे और मेरे भक्त समान होंगे यह व्रत मुझे सबसे प्रिय होगा जिससे मनुष्य को मोक्ष प्राप्त होगा। इस प्रकार भगवान चले जाते हैं और एकादशी का जन्म सफल हो जाता हैं।

इस प्रकार एकादशी का जन्म उत्पन्ना एकादशी से होता हैं और तब ही से आज तक इस व्रत का पालन किया जाता हैं और इसे सर्वश्रेष्ठ व्रत कहा जाता हैं।

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