दशामाता व्रत कथा 4
दशामाता व्रत कथा 4
एक साहूकार था | उसके परिवार में पांच पुत्र , उनकी बहुए तथा एक पुत्री थी | पुत्री का विवाह हो चूका था | परन्तु उसका गोना नहीं हुआ था | इस कारण वह भी अपने माता-पिता के घर मैं रह रही थी |
एक दिन साहूकार की पत्नी दशामाता का डोरा ले रही थी | उसकी बहुओ ने भी डोरे लिए | बहुओ ने अपने सास से पूछा की -‘ क्या ननद के लिए भी डोरा लेना है ?|’ सास ने कहा -‘हा ‘| इस पर बहुओ ने कहा की -‘ उनकी तो विदाई होने वाली है | यदि व्रत से पहले ही विदा हो गयी तब क्या होगा ?|’ सास ने उतर दिया -‘मैं व्रत का सारा सामान साथ मैं रख दूंगी | वह अपने ससुराल मैं पूजा कर लेगी |’
ऐसा ही हुआ उसके ससुराल से लेने उसका पति आ गया | माँ ने बेटी को विधिपूर्वक विदा किया और उसकी पालकी मैं पूजा का सब सामान रखवा दिया | लड़की जब अपने ससुराल पहुची तो उसे घर के आँगन मैं गलीचा बिछाकर बैठाया गया | आस-पड़ोस की महिलाये नई बहु को देखने आने लगी | सब उसकी सुंदरता और गहने कपड़ो की तारीफ करने लगे | किसी की निगाह उसके गले मैं बंधे डोरे पर पड़ गई | वह बोली -‘ बहु की माँ बड़ी टोटके वाली है |’ सबकी निगाहे उसकी बात सुनकर उसके गले मैं पड़े डोरे पर पड़ी | सभी स्त्रियां डोरे के बारे मैं अपनी-अपनी राय प्रकट करने लगी | शाम को सास , ननद , देवरानी ,जेठानी , घर की सभी स्त्रियां भी उसी डोरे की चर्चा करने लगी | सब डोरे की निंदा कर रही थी |
सुबह से शाम तक डोरे के बारे सुनते-सुनते बहु का दिमाग ख़राब हो गया | उसने डोरे को गले से उतार कर जलती हुई आग मैं डाल दिया | डोरे के जलते ही सारे घर मैं आग लग गयी | घर मैं रखा सब धन-धान जल गया | सब आदमी अपने प्राण बचाकर घर से बाहर भागे | अब घर मैं केवल नई बहु और उसका पति रह गया | बाकि सब भाग गए थे |
घर का सारा सामान जल गया था | घर में अब न खाने को अन्न था और न ही पहनने के लिए वस्त्र बचे थे | इसलिए दोनों पति-पत्नी गांव छोड़कर रोजगार खोजने चल दिए | चलते-चलते वे उसी गांव मैं पहुच गए जहा की वह लड़की थी | लड़की ने अपने पति से कहा -‘ तुम यहाँ भाड़ झोको और मैं भी कोई काम ढूंढती हु |’ पत्नी का कहना मानकर वह भाड़ झोकने लगा और वह स्वयं एक कुवे पर जाकर बैठ गयी |
उस कुवे पर सारे गांव की स्त्रियां पानी भरने आया करती थी | उस लड़की की भाभियां उस कुवे पर पानी भरने आई परंतु उन्होंने अपनी ननद को नहीं पहचाना | वे उससे बोली-‘ तुम तो किसी भले घर की लड़की मालूम होती हो | कुछ काम करना चाहती हो तो बोलो |’ लड़की बोली -‘ काम तो करुँगी परन्तु कोई नीच काम नहीं करूँगी |’ बड़ी भाभी बोली -‘ हमारी ननद ससुराल चली गयी है | तुम हमारे बच्चो की देखभाल करती रहना और हमारे घर से सीधा लेकर अपना भोजन बना लिया करना |’ लड़की इस काम के लिए राजी हो गई |
लड़की की भाभियां अपने घर आई और सास से बोली -‘ कुवे पर एक अनाथ लड़की बैठी है | वह हमारे घर रहने और बच्चो की देखभाल करने को राजी है | आप कहो तो हम उसे रख ले ?’ सास ने कहा -‘ख़ुशी से रख लो , परंतु आपस मैं कलह मत करना |’ सब बहुए राजी हो गई | वे वापस कुवे पर आई और उसे घर ले आई | वह अपने भतीजे और भतीजियो की देखभाल करने लगी और अपना जीवन निर्वाह करने लगी |
एक दिन दशामाता का डोरा लेने का अवसर आया | सास के कहने पर सब बहुओ ने डोरा लिया | बहुओ ने सास से पूछा की -‘ क्या इस लड़की के लिए भी डोरा लेना है ‘ सास ने कहा -‘हा |’ बहुओ ने कहा-‘ इसी प्रकार आपने ननद जी के लिए भी डोरा ले लिया था , परन्तु पूजा से पहले ही उनकी विदाई हो गई | अब इस लड़की को डोरा दिलाना चाहती हो | यदि यह पूजा से पहले चली गई तो क्या होगा ? |’
सास बोली -‘ तुम्हारी ननद ने अपने घर जाकर पूजा की होगी | यह लड़की पूजा होने तक इसी घर में रहेगी तो अपने आप पूजा में शामिल हो जाएगी और यदि कही चली गयी तो वह पर ही पूजा कर लेगी |’ सर्वसमति से लड़की ने भी दशामाता को डोरा ले लिया | नो दिन तक वह दशामाता की कहानी तथा व्रत पूजन में शामिल होती रही | दसवे दिन लड़की की माता व् बहुओ ने सर से स्नान किया और घर में चोका लगाया तथा पूजन की तयारी करने लगी |
लड़की बहुओ से बोली -‘ यदि कोई पुराना कपडा मिल जाये तो में भी स्नान कर लु | ‘ बहुओ ने अपनी सास से पूछ कर अपनी ननद की साड़ी उस लड़की को दे दी | अपनी पुरानी साड़ी लेकर वह स्नान करने गयी | उसने सर से स्नान करके साड़ी पहनी और घर आ गयी | घर पर पूजा आरम्भ हो गई | वह जैसे ही पूजा के पास आकर बैठी तो बहुओ ने कहा-‘ यह तो हमारी ननद जैसी लग रही है |’
इस पर सास ने नाराज होकर कहा -‘ तुम्हारे मन में जो आता है बोलती रहती हो | पूजा के समय भी चुपचाप नहीं बैठा जाता है | चुप रहो , मुझे कथा कह लेने दो | तुम्हारी बातो से कथा में विघ्न पड़ता है |’ बहुए चुप हो गई | घर की सब स्त्रियों ने पारण किया | लड़की ने भी पारण किया | इसके बाद स्त्रियां एक-दूसरे का सर गुथने लगी | एक ने लड़की का सर गुथना सुरु किया | वह बोली की -‘ जैसी गूँथ सिर मैं है वैसी गूँथ हमारी ननद के सिर मैं थी | ‘ सास नाराज होकर बोली -‘ तुम मेरी बेटी की तुलना इससे क्यों कर रही हो ?’
सास ने बहु को तो डाट दिया परन्तु उसकी बात मन मैं घर कर गयी | उसने लड़की से कहा -‘आज रात मेरे पास सोना |’ रात तो जब बहुए सो गयी तो उसने लड़की से पूछा -‘ तुम्हारे पीहर मैं कभी कोई था ?’ उसने जवाब दिया -‘ मेरे पांच भाई और भाभियां थी | तुम जैसे माता-पिता थे| ‘
उसने फिर पूछा -‘क्या हुआ ?’ लड़की बोली -‘ पीहर मैं मैंने दशामाता का डोरा लिया था | उसके पूजन से पहले ही ससुराल के लिए विदा हो गयी | ससुराल मैं पहुच कर मेरे गले मैं पड़े डोरे को देखकर वह की स्त्रियां हंसी उड़ाने लगी | तब मैंने उस डोरे को आग मैं दाल दिया | उस डोरे के साथ सारा घर जलकर भस्म हो गया | सब लोग भाग गए | हम दोनों भाग कर इस गांव मैं आ गए |’
उसकी माँ ने पूछा की -‘ तुम्हारा पति कहा है ?’ लड़की ने कहा -‘वह भड़भूजे के यहाँ भाड़ झोंकता है | दशामाता के प्रकोप से हमारी ये हालात हो गई |’ वह समझ गए की यह लड़की कोई और नहीं उसकी बेटी ही है |तब उसने अपने पाचो बेटो को बुला कर कहा की यह तुम्हारी छोटी बहिन ही है | सवेरा होते ही माता के कहने पर पाचो भाई भड़भूजे के यहाँ से अपने बहनोई को लेकर आये |
उन्होंने उसको स्नान कराया और उत्तम वस्त्र पहनने को दिए | कपडे पहन कर वह सुन्दर साहूकार दिखाई देने लगा | वह कुछ दिन ससुराल रहकर अपने घर चला गया | घर पहुचकर उसने देखा की सब लोग पहले की तरह सुखप्रवक रह रहे है | इसके बाद वह अपने ससुराल आया और अपनी पत्नी को विदा कर घर ले गया |
वह अपनी दशा पर विचार करती हुई जा रही थी | मार्ग मैं एक नदी पड़ी उस नदी मैं स्नान करके अप्सराये दशामाता का डोरा ले रही थी | उनके पास एक डोरा बच गया था | वह अप्सराये बोली-‘ यदि इस डोली मैं कोई उच्च वर्ग की स्त्री हो तो उसे ये डोरा दे दें |’ उन्होंने डोली के पास जाकर पता किया और वह डोरा उस लड़की को दें दिया |
जब लड़की अपनी ससुराल पहुची तो सास थाल सजाये ननद कलश लिए और देवरानी-जेठानी अन्य मांगलिक वस्तुवे लिए उसका स्वागत करने के लिए खड़ी थी | नेग दस्तूर हो जाने के बाद लड़की को आसन पर बैठाया गया | आसन पर बैठने के बाद लड़की ने कहा -‘ आप लोगो ने पहली बार दशामाता के डोरे के लिए अपशब्द कहे थे जिसका का फल ये हुआ की घर के सब लोग बिछुड़ गए तथा घर का धन-धान्य जलकर स्वाह हो गया | बड़ी मुसीबते उठाने के बाद अब अच्छे दिन आये है | आप मैं से कोई भी अब मेरे दशामाता के डोरे की निंदा करने की भूल न करे | जब मेरा व्रत हो तब सब श्रद्धापूर्वक पूजा करे | ‘
सब ने ख़ुशी-ख़ुशी उसकी बात मान ली | नो दिन तक व्रत चलता रहा | दसवे दिन विधिपूर्वक डोरे की पूजा की गई | सात सुहागिनों को न्योता दिया गया |उनका शंगार करके आँचल भरा गया | इस प्रकार दशामाता को पूजन समाप्त हुआ |
जिस प्रकार दशामाता ने उस लड़की के दिन फेरे , वैसे ही वह सब पर दया करे |
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