हनुमानजी और शनि देव जी का रिश्ता

1. क्यों शनिदेव जी के ऊपर शनिवार को तेल चढ़ाया जाता है ?

एक बार महावीर हनुमान श्री राम के किसी कार्य में व्यस्त थे | उस जगह से शनिदेव जी गुजर रहे थे की रास्ते में उन्हें हनुमान जी दिखाई पड़े | अपने स्वभाव की वजह से शनिदेव जी को शरारत सूझी और वे उस रामकार्य में विध्न डालने हनुमान जी के पास पहुच गये | हनुमानजी शनि देव को चेतावनी दी और उन्हें ऐसा करने से रोका पर शनिदेव जी नहीं माने |

शनि ने अहंकारपूर्वक कहा-‘मैं परम तेजस्वी सूर्य का परम पराक्रमी पुत्र शनि हूँ। जगत मेरा नाम सुनते ही काँप उठता है। मैंने तुम्हारे बल-पौरुष की कितनी गाथाएँ सुनी हैं। इसलिये मैं तुम्हारी शक्ति की परीक्षा करना चाहता हूँ। सावधान हो जाओ, मैं तुम्हारी राशि पर आ रहा हूँ।’

हनुमान जी ने अत्यन्त विनम्रतापूर्वक कहा-‘शनिदेव! मैं काफी थका हूँ और अपने प्रभु का ध्यान कर रहा हूँ। इसमें व्यधान मत डालिये। कृपापूर्वक अन्यत्र चले जाइये।’

घमण्डी शनि ने अहंकारपूर्वक कहा-‘मैं कहीं जाकर लौटना नहीं जानता और जहाँ जाता हूँ, वहाँ अपना प्रभाव तो स्थापित कर ही देता हूँ।’

हनुमान जी ने बार-बार प्रार्थना की-‘देव! मैं थका हुआ हूँ। युद्ध करने की शक्ति मुझमें नहीं है। मुझे अपने भगवान श्रीराम का स्मरण करने दीजिए। आप यहाँ से जाकर किसी और वीर को ढूँढ लीजिए। मेरे भजन ध्यान में विध्न उपस्थिति मत कीजिए।’

घमण्ड से भरे शनि ने हनुमान की अवमानना के साथ व्यंगपूर्वक तीक्ष्ण स्वर मे कहा-‘तुम्हारी स्थिति देखकर मुझे तुम पर दया तो आ रही है, किंतु युद्ध तो तुमसे मैं अवश्य करूंगा।’ इतना ही नहीं, शनि ने हनुमान का हाथ पकड़ लिया और उन्हें युद्ध के लिये ललकारने लगे।

हनुमान ने झटक कर अपना हाथ छुड़ा लिया। शनि ने पुनः हनुमान का हाथ जकड़ लिया और युद्ध के लिये खींचने लगे।

‘आप नहीं मानेंगे’ धीरे से कहते हुए हनुमान ने अपनी पूंछ बढ़ाकर शनि को उसमें लपेटना शुरू कर दिया। शनि ने अपने को छुड़ाने का भरसक प्रयास किया। उनका अहंकार, शक्ति एवं पराक्रम व्यर्थ सिद्ध होने लगा। वे असहाय होकर बंधन की पीड़ा से छटपटा रहे थे।

हनुमानजी  फिर से राम कार्य करने लगे | कार्य के दौरान वे इधर उधर खुद के कार्य कर रहे थे | इस दौरान शनिदेवजी को बहूत सारी छोटे आई | शनिदेव ने बहूत प्रयास किया पर बालाजी की कैद से खुद को छुड़ा नहीं पाए | उन्होंने हनुमंते से बहूत विनती की पर हनुमानजी कार्य में खोये हुए थे |

पीड़ा से व्याकुल शनि अब बहुत ही दुःखीत स्वर में प्रार्थन करने लगे-‘करुणामय भक्तराज! मुझ पर दया कीजिए। अपनी बेवकूफी का दण्ड में पा गया। आप मुझे मुक्त कीजिए। मेरे प्राण छोड़ दीजिए।’ शनिदेव जी को अपनी भूल का अहसास हुआ |

दयामूर्ति हनुमान खड़े हुए। शनि का अंग-अंग लहुलुहान हो गया था। उनके रग-रग में असहनीय पीड़ा हो रही थी। हनुमान ने शनि से कहा-‘यदि तुम मेरे भक्त की राशि पर कभी न जाने का वचन दो तो मैं तुम्हें मुक्त कर सकता हूँ और यदि तुमने ऐसा किया तो मैं तुम्हें कठोरतम दण्ड प्रदान करूँगा।’

‘वीरवर! निश्चय ही मैं आपके भक्त की राशि पर कभी नहीं जाऊँगा।’ पीड़ा से छटपटाते हुए शनि ने अत्यन्त आतुरता से प्रार्थना की-‘अब आप कृपापूर्वक मुझे शीघ्र बन्धन-मुक्त कीजिए।’
भक्तवर हनुमान ने शनि को छोड़ दिया। शनि ने अपना चोटिल शरीर को सहलाते हुए हनुमान जी के चरणों में सादर प्रणाम किया और  हनुमान से कुछ तेल माँगा जिसे वो अपने घावो पर लगा सके और जल्द ही चोटो से उभर सके | हनुमानजी ने उन्हें वो तेल उपलब्ध करवाया और इस तरह शनिदेव के जख्म ठीक हुए |

तब शनिदेव जी ने कहा की जो भी भक्त शनिवार के दिन मुझ पर  तेल चढ़ायेगा उसे मेरा विशेष आशीष प्राप्त होगा |

2. हनुमानजी ने शनिदेव को रावण की जेल से मुक्त करवाया :

एक कथा के अनुसार अहंकारी लंकापति रावण ने शनिदेव जो को कैद कर लिया और उन्हें लंका में एक जेल में डाल दिया | जब तक हनुमानजी लंका नहीं पहुचे तब तक शनिदेव उसी जेल में कैद रहे |

जब हनुमान सीता मैया की खोज में लंका में आये तब माँ जानकी को खोजते खोजते उन्हें भगवान् शनि देव जेल में कैद मिले | हनुमानजी ने तब शनि भगवान को आजाद करवाया | आजादी के बाद उन्होंने हनुमंते का धन्वाद किया और उनके भक्तो पर विशेष कृपा बनाये रखने का वचन दिया |

 

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