कुशग्रहणी अमावस्या , ये है इसका महत्व व विधि

Kushgrahni Amavsya-कुशग्रहणी अमावस्या

भाद्रपद मास की अमावस्या तिथि को कुशग्रहणी अमावस्या कहते हैं। धर्म ग्रंथों में इसे कुशोत्पाटिनी अमावस्या भी कहा गया है। इस दिन वर्ष भर किए जाने वाले धार्मिक कार्यों तथा श्राद्ध आदि कार्यों के लिए कुश (एक विशेष प्रकार की घास, जिसका उपयोग धार्मिक व श्राद्ध आदि कार्यों में किया जाता है) एकत्रित किया जाता है।

Kushgrahni Amavsya-कुशग्रहणी अमावस्या

Kushgrahani Amawasya

शास्त्रों में दस प्रकार के कुशों का वर्णन मिलता है-
कुशा: काशा यवा दूर्वा उशीराच्छ सकुन्दका:।
गोधूमा ब्राह्मयो मौन्जा दश दर्भा: सबल्वजा:।।

इनमें से जो भी कुश इस तिथि को मिल जाए, वही ग्रहण कर लेना चाहिए। जिस कुश में पत्ती हो, आगे का भाग कटा न हो और हरा हो, वह देव तथा पितृ दोनों कार्यों के लिए उपयुक्त होता है। कुश निकालने के लिए इस तिथि को सूर्योदय के समय उपयुक्त स्थान पर जाकर पूर्व या उत्तराभिमुख बैठकर यह मंत्र पढ़ें और दाहिने हाथ से एक बार में कुश उखाड़ें-
विरंचिना सहोत्पन्न परमेष्ठिन्निसर्गज।
नुद सर्वाणि पापानि दर्भ स्वस्तिकरो भव।।


भाद्रपद अमावस्या को पिथौरी अमावस्या के नाम से भी पूजते है | अधिक जानकारी के लिए क्लिक करे
पिथौरी अमावस्या पर व्रत से मिलेंगे बहादुर और स्वस्थ संतान


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *