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महाराष्ट्रीयन समाज में पिठोरी अमावस्या पर पोला (पोळा) पर्व धूमधाम से मनाया गया। यह छत्तीसगढ़ का लोक पर्व भी है। इस दिन अपने पुत्रों की दीर्घायु के लिए चौसष्ठ योगिनी और पशु धन का पूजन किया जाता है।

इस अवसर पर जहां घरों में बैलों की पूजा होती है, वहीं लोग पकवानों का लुत्फ भी उठाते हैं। इसके साथ ही इस दिन ‘बैल सजाओ प्रतियोगिता’ का आयोजन किया जाता है।

पोळा पर्व पर शहर से लेकर गांव तक धूम रहती है। इस दौरान जगह-जगह बैलों की पूजा-अर्चना की होती है। गांव के किसान भाई सुबह से ही बैलों को नहला-धुला कर सजाते हैं, फिर हर घर में उनकी विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है। इसके बाद घरों में बने पकवान भी बैलों को खिलाएं जाते हैं।

इस दिन मिट्टी और लकड़ी से बने बैल चलाने की भी परंपरा है। पर्व के दो-तीन दिन पूर्व से ही बाजारों में लकड़ी तथा मिट्टी के बैल जोड़‍ियों में बिकते दिखाई देते हैं। बढ़ती महंगाई के कारण यह अब करीबन 30 रुपए से लेकर सौ रुपए तक की जोड़ी में बेचे जाते हैं। इसके अलावा मिट्टी के अन्य खिलौनों की भी भरमार बाजारों में दिखाई देती‍ है।

यह त्योहार दरअसल कृषि आधारित पर्व है। वास्तव में इस पर्व का मतलब खेती-किसानी जैसे- निंदाई, रोपाई आदि का कार्य समाप्त हो जाना है, लेकिन कई बार अनियमित वर्षा के कारण ऐसा नहीं हो पाता है। खास तौर पर छत्तीसगढ़ में इस लोक पर्व पर घरों में ठेठरी, खुरमी, चौसेला, खीर, पूड़ी जैसे कई लजीज व्यंजन बनाए जाते हैं।

बैल किसानों के जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है। किसान बैलों को देवतुल्य मान कर उसकी पूजा-अर्चना करते हैं। पहले कई गांवों में इस अवसर पर बैल दौड़ का भी आयोजन किया जाता था, लेकिन समय के साथ यह परपंरा समाप्त होने लगी है।

इस अवसर पर बैल दौड़ और बैल सौंदर्य प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है। इसमें अधिक से अधिक किसान अपनी बैलों के साथ भाग लेते हैं। खास सजी-संवरी बैलों की जोड़ी को इस दौरान पुरस्कृत भी किया जाता है।

 


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