आज बैकुण्ठ चतुर्दशी- भगवान शिव और विष्णु का मिलन का दिन , जानिए कथा एवम पूजा विधि

वैकुण्ठ चतुर्दशी की कथा एवम पूजा विधि | Vaikuntha Chaturdashi Vrat Puja Vidhi In Hindi
कब मनाई जाती हैं वैकुण्ड चतुर्दशी ?
जब आषाढ़ की एकादशी के दिन भगवान विष्णु निंद्रा में चले जाते हैं, तब भगवान शिव इन चार महीनों में संसार के सभी कार्य संभालते हैं।कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष चतुर्दशी के दिन को बैकुण्ठ चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु और शिव की पूजा की जाती है। इस दिन व्रत किया जाता है। इस दिन को बैकुण्ठ चौदस के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन को हरिहर का मिलन कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव का मिलन हुआ था। इस दिन मंदिरों में बड़ा आयोजन किया जाता है। कार्तिक माह की एकादशी को भगवान विष्णु जागते हैं तो भगवान शिव उन्हें सारे काम सौंप देते हैं।
वैकुण्ठ चतुर्दशी को हरिहर का मिलन कहा जाता हैं अर्थात भगवान शिव और विष्णु का मिलन। विष्णु एवं शिव के उपासक इस दिन को बहुत उत्साह से मनाते हैं । खासतौर पर यह उज्जैन, वाराणसी में मनाई जाती हैं । इस दिन उज्जैन में भव्य आयोजन किया जाता हैं। शहर के बीच से भगवान की सवारी निकलती हैं, जो महाकालेश्वर मंदिर तक जाती हैं । इस दिन उज्जैन में उत्सव का माहौल चारो और रहता हैं दिवाली की तरह भगवान शिव और विष्णु का मिलन का उत्साह से मनाया जाता हैं ।
वैकुण्ठ चतुर्दशी की कथा एवम पूजा विधि | Vaikuntha Chaturdashi Vrat Puja Vidhi In Hindi

वैकुण्ठ चतुर्दशी की कथा एवम पूजा विधि | Vaikuntha Chaturdashi Vrat Puja Vidhi In Hindi
कथा 1: इस दिन को हरिहर का मिलन कहा जाता हैं । भगवान विष्णु वैकुण्ठ छोड़ कर शिव भक्ति के लिए वाराणसी चले जाते हैं और वहाँ हजार कमल के फूलों से भगवान शिव की उपासना करते हैं वे भगवान शिव की पूजा में तल्लीन हो जाते हैं और जैसे ही नेत्र खोलते हैं उनके सभी कमल फूल गायब हो जाते हैं तब वे भगवान शिव को अपनी एक आँख जिन्हें कमल नयन कहा जाता हैं वो अर्पण करते हैं, उनसे प्रसन्न होकर भगवान शिव प्रकट होते हैं और उन्हें नेत्र वापस देते हैं साथ ही विष्णु जी को सुदर्शन चक्र देते हैं। यह दिन वैकुण्ठ चतुर्दशी का कहलाता हैं इस प्रकार हरी (विष्णु ) हर (शिव) का मिलन होता हैं ।माना जाता है कि इस दिन स्वर्ग के सभी द्वार खुले रहते हैं।
कथा 2: एक धनेश्वर नामक ब्राह्मण था जो बहुत बुरे काम करता था। उसके माथे कई पाप थे ।एक दिन वो गोदावरी नदी के स्नान के लिए गया उस दिन वैकुण्ठ चतुर्दशी थी । कई भक्तजन उस दिन पूजा अर्चना कर गोदावरी घाट पर आये थे उस दिन भीड़ में धनेश्वर उन सभी के साथ था इस प्रकार उन श्रद्धालु के स्पर्श के कारण धनेश्वर को भी पूण्य मिला । जब उसकी मृत्यु हो गई तब उसे यमराज लेकर गये और नरक में भेज दिया ।तब भगवान विष्णु ने कहा यह बहुत पापी हैं पर इसने वैकुण्ठ चतुर्दशी के दिन गोदावरी स्नान किया इसके सभी पाप नष्ट हो गये इसलिए इसे वैकुण्ठ धाम मिलेगा ।माना जाता है कि इस दिन स्वर्ग के सभी द्वार खुले रहते हैं।
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