बुधवार व्रत कथा 3

बुधवार व्रत कथा


बुधवार व्रत कथा – एक समय की बात एक अंधी बुढ़िया थी । उसके एक बेटा और बहू थे। वह हर रोज गणेश जी की पूजा किया करती थी । एक दिन गणेशजी ने उससे कहा- बुढ़िया माई कुछ मांग । बुढ़िया ने कहा कि, ‘मुझे तो कुछ मांगना नहीं आता।

गणेशजी ने कहा कि, ‘अपने बेटे बहू से पूछ ले, फिर मांग लेना।’ बुढ़िया ने यह बात अपने बेटे से कही कि,‘गणेश जी मुझे कुछ मांगने की कहते हैं, क्या मांगू?’ बेटे ने कहा कि, मां धन मांग लो। बहू ने कहा कि पोता मांग लो। बुढ़िया ने सोचा कि यह दोनों तो अपने-अपने मतलब की चीज़ मांगने की कह रहे हैं। वह अपनी पड़ोसन के पास गई और बोली कि, ‘मुझे गणेशजी कुछ मांगने की बोल रहे हैं, मैं क्या मांगूं? बेटा कहता है धन मांग लो, बहू कहती है पोता मांग लो तो मैं क्या करूं?’ पड़ोसन बोली, ‘क्यों तुम पैसा मांगो और क्यों पोता मांगो, थोड़े दिन जीना है तो अपने लिए आंखे मांग लो।’ बुढ़िया ने पड़ोसन की भी बात नहीं मानी ।

उसने सोचा कि बेटे-बहू की इच्छा मांगनी चाहिए और अपने सुख की भी सोचना है। दूसरे दिन गणेशजी आए बोले, ‘बुढ़िया कुछ मांग’। वह बोली कि, ‘मैं अपने पोते को सोने के कटोरे में दूध पीता देखना चाहती हूं।’ इस तरह के वरदान उसने अपने बेटे के लिए धन, बहू के लिए बेटा और अपने लिए आंखें मांग ली।

गणेशजी ने कहा कि बुढ़िया माई तुम तो बड़ी चतुर हो। तुम ने तो सब कुछ मांग लिया। उसे वरदान देकर गणेशजी अंतर्धान हो गए।

हे गणेशजी महाराज ! जैसा उस बुढ़िया को दिया, वैसा सबको देना। कहानी कहते को, सुनते को, सारे परिवार को देना ।

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